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BHASHIKI ISSN: 2454-4388 (Print): Quarterly International Refereed Research Journal of Language, Applied Linguistics, Education, Media, Translation and Literary Analysis भाषा, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, शिक्षा, मीडिया तथा साहित्य-विश्लेषण की संदर्भ-रिसर्च तिमाही अंतर्राष्ट्रीय संवाहिका

Tuesday 10 January 2017

सकारात्मक दृष्टिकोण ही मनुष्य की परम शक्ति है (Positive Attitude Is Ultimate Power of Human Being) (Позитивное отношение Абсолютная Сила Человека) प्रोफ़ेसर राम लखन मीना, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर

सकारात्मक दृष्टिकोण ही मनुष्य की परम शक्ति है
(Positive Attitude Is Ultimate Power of Human Being)

(Позитивное отношение Абсолютная Сила Человека)

प्रोफ़ेसर राम लखन मीना, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर

सफल स्वस्थ और सुमधुर जीवन का पहला और आखिरी मंत्र है: सकारात्मक सोच। यह अकेला ऐसा मंत्र है, जिससे न केवल व्यक्ति और समाज की, वरन् समग्र विश्व की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। यह सर्व कल्याणकारी मंत्र है। मेरी शान्ति, सन्तुष्टि, तृप्ति और प्रगति का अगर कोई प्रथम पहलू है, तो वह सकारात्मक सोच ही है। सकारात्मक सोच ही मनुष्य का पहला धर्म  है  और यही उसकी आराधना का बीज मंत्र है। सकारात्मक सोच का स्वामी सदा धार्मिक ही होता है। सकारात्मकता से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई पाप नहीं।, सकारात्मकता से बढ़कर कोई धर्म नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई अधर्म नहीं। कोई अगर पूछे कि मानसिक शान्ति और तनाव मुक्ति की दवा क्या है, तो सीधा सा जवाब होगा सकारात्मक सोच। 
अनगिनत लोगों पर इस मंत्र का उपयोग किया गया है और आज तक यह मंत्र कभी निष्फल नहीं हुआ है। सकारात्मक सोच का अभाव ही मनुष्य की निष्फलता का मूल कारण है। इस पर मुझे एक कहानी याद आती है। किसी दूधवाले की दूध की केन में एक नटखट बालक ने दुखीराम नामक मेढ़क को पकड़ कर डाल दिया। केन में बन्द होते ही मेढ़क घबरा गया। केन का ढक्कन बन्द था व उसके बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। नाम से ही नहीं वह सोच से भी दुखीराम था। अतः उस मेढ़क ने पहले तो केन में फेंकने वाले उस बच्चे को व उसके खानदान को अपशब्द कहे। फिर केन निर्माता को गालियां देने लगा। उसके बाद प्रभु को कोसने लगा कि मुझे ड्रिल जितनी शक्ति मूंह में क्यों न दी।  इस प्रकार अपनी कमजोरियों को याद कर स्वयं का जीवन खतरे में डालता रहा। अपनी शक्तियों का उसने तनिक भी विचार नहीं किया। फलस्वरूप दोष देते-देते व थोड़ी देर में डूब गया।
दूसरे दिन एक नटखट बालक ने सुखीराम नामक मेढ़क को पकड़ कर फिर दूध के केन में चुपके से डाल कर ढक्कन बन्द कर दिया। तब सुखीराम ने अपना विश्लेषण पद्धति के आधार पर किया। स्वोट पद्धति की मान्यता है कि अपनी शक्तियों को याद करो, कोई न कोई अवसर जरूर निकलेगा। ऐसे में उसे याद आया कि मेढ़क की सबसे बड़ी क्षमता किसी भी द्रव्य में  तैरने की है। अतः वह तीव्र गति से दूध में तैरने लगा। 10-15 मिनट निरन्तर मेढ़क के तैरने से दूध का मन्थन हो गया व उसमें मक्खन का एक ढ़ेर बन गया जिस पर सुखीराम बैठ गया। तनिक देर बाद ज्यों ही दूध वाले ने केन का ढक्कन खोला वह कूद कर बाहर निकल गया। समान परिस्थिति में सुखीराम मेढ़क सकारात्मक वृत्ति के कारण बच जाता है एवं दुखीराम डूब मरता है।
हम सबको स्वयं का परीक्षण करना चाहिये कि हम किस वर्ग से हैं। हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक है या नहीं। अस्तित्व सकारात्मक है। ब्रह्माण्ड  विकासमान है। क्या किसी प्राकृतिक आपदा भूकम्प, बाढ़ या महामारी से हमारी गति रुकी है ? सृष्टि चल रही है। इसकी गति सकारात्मक है। क्या हम इससे सकारात्मकता का सबक नहीं सीख सकते हैं। तभी तो वैदिक ऋषियों ने कहा है, ‘‘चरैवेति, चरैवेति’’अत्याधुनिक जीवन शैली के साथ महानगरीय परिवेश में कुंठा, संत्रास, मृत्युबोध को समेटे प्रतिस्पर्धात्मकता की युगीन प्रतिच्छाया में जीवन यापन कर रहे हैं। हमें सदैव परिवेश एवं वातावरण ने प्रभावित किया है। ऐसे में समय की तीव्र रफ्तार के साथ कदम से कदम मिलाते समय तनाव जन्म लेता है और हमारी मनःस्थिति में नकारात्मक विचार सकारात्मक विचारों से पूर्व मन में उभर कर आता है।
एक नकारात्मक विचार हमारे अनेक सकारात्मक विचारों को समाप्त करता है, उनका क्षमन करता है। जहाँ एक किंचित-सी पराजय अथवा विफलता का भाव मन में निराशा को जन्म देता है वहीं एक छोटी-सी सफलता का सकारात्मक विचार मन में उमंग एवं स्फूर्ति का संचार कर देता है। अतएव आज के परिप्रेक्ष्य में सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता सकारात्मक दृष्टिकोण तथा सोच के साथ आगे बढने की है।  आज लगभग सभी वर्ग स्पर्धात्मकता से जूझ रहे हैं, इससे कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा है। इसमें चाहे विद्यार्थी, कर्मचारी या व्यावसायिक कोई भी वर्ग क्यूँ न हो, सभी को स्पर्धा से गुजरना पड रहा है। ऐसे में तनाव, निराशा और मानसिक अवसाद से बाहर निकलकर सकारात्मक सोच को अपनाने की अत्यन्त आवश्यकता अनुभव की जाने लगी है।
अनवरत आत्म नियंत्रण एवं आत्म विश्लेषण के माध्यम से नकारात्मक विचारों पर विजय प्राप्त कर सकारात्मक सोच विकसित की जा सकती है। इस दिशा में आत्म विश्वास, दृढ निश्चय, लगन एवं मेहनत का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान एवं योगदान है। सुख-दुःख, सफलता-असफलता तो दिन रात की भाँति होते हैं, जो समय के परिर्वतन को इंगित करते हैं तथा जिनका अस्त्तित्व चिर स्थाई नहीं होता है।  हमें अत्यन्त निराशाजनक एवं तनाव की घडी से बचने के लिए प्रतिदिन आत्मचिंतन, आत्ममंथन एवं आत्म विश्लेषण करना चाहिये। जिसके माध्यम से निराशा के कारणों का परीक्षण करते हुए उन पर ध्यान केन्दि्रत करना चाहिये तथा आने वाले क्षण की ओर सकारात्मक विचार एवं आशावादी दृष्टिकोण के साथ आगे बढना चाहिये। एक समय में जो हमारे सामने निराशा का भाव है वह आशा के भाव में अवश्य शीघ्र बदलने वाला है।
यहाँ आवश्यकता मात्र संयमित धैर्यपूर्वक विचार करते हुए निराशा के कारणों को सकारात्मक दृष्टिकोण से बदलने की है। आज जो दुःख अथवा निराशा की घडी है, वह कल नहीं रहेगी यह निश्चित है। हर अन्धेरी रात के बाद सुबह अवश्य आती है। सदैव आशावादी दृष्टिकोण रखने से सकारात्मक सोच विकसित होती है जिसे श्वास-प्रच्छवासों पर ध्यान केन्दि्रत करते हुए मन पर एकाग्रता के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। कभी भी विफलता में निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि प्रत्येक विफलता यह बताती है कि सफलता उससे केवल दो कदम दूर खडी उसका इन्तजार कर रही है। हम चाहे किसी भी वर्ग, वर्ण अथवा संवर्ग से सम्बद्ध क्यों हों, आत्म विश्वास को सुदृढ बनाने के लिए दिनचर्या में अपने आराध्य की नियमित स्तुति एवं सद्साहित्य के नियमित अध्ययन को सम्मिलित किये जाने से सकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं जो सकारात्मक परिणाम के रूप में हमारे सामने आते हैं।
हमारे तन-मन को स्वस्थ्य बनाने एवं विचारों को स्वस्थ्य एवं सकारात्मक बनाने के लिए नियमित व्यायाम, समय पर भोजन, नियमित आत्म चिंतन एवं आत्म विश्लेषण तथा प्रेरणादायक सद्साहित्य के अध्ययन द्वारा नकारात्मक सोच का क्षमन किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त निराशाजनक परिवेश, नकारात्मक विचारों वाले लोगों तथा विचारों से दूर रहने से भी स्वस्थ्य परिवेश का निर्माण किया जा सकता है। एक सद्विचार एवं सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति कुसुमित उपवन में महकते हुए सुमन के सदृश्य होता है जो समग्र वातावरण को सुगन्धित और प्रसन्न बनाता है। किसी भी बुरी आदत को अच्छी आदत में बदलने के लिए मात्र 21 दिवस का समय, नियमित अभ्यास तथा आत्म चिन्तन पर्याप्त होता है जो बुरी आदत को अच्छी आदत में बदलने में सहायक होता है।
जरूरत है तो मात्र चिन्तन की, दृष्टिकोण की एवं सकारात्मक सोच की। केवल नजरिया ही हमारे सोच को स्पष्ट कर देता है। एक आधे पानी से भरे हुए गिलास को देखकर नकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति उसे आधा खाली गिलास कहेगा जबकि सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति उस आधे पानी से भरे हुए गिलास को आधा भरा गिलास कहेगा। यही दृष्टिकोण है जो विचारों को बदलने में सहायक होता है। हम अपनी भावनाओं को बदलने का प्रयास करें, हमारा दृष्टिकोण अपने आप बदल जायेगा। जीवन को सकारात्मक सोच एवं ऊर्जा के साथ समझने का प्रयास किया जाना चाहिये। क्योंकि जब हम जीवन को समझ पाते हैं तब तक हम उम्र के उत्तरार्ध में पहुँच जाते हैं।
जीवन हमें एक बहुमूल्य ईश्वरीय उपहार है जिसे हमें श्रेष्ठतम सिद्ध करते हुए जीना चाहिये। जीवन का यथेष्ट लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिये। और लक्ष्य की ओर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढना चाहिये। हम देखेंगे हमारे जीवन की शैली ही बदल गई है। हमारा दृष्टिकोण ही बदल गया है और हम देखेंगे दृढ आत्मविश्वास एवं सफलता के नये आयामों ने हमारे जीवन के सुनहरे द्वार खोल दिये है। हमें सदैव कर्मशील रहना चाहिये क्योंकि सृजनशील एवं रचनात्मकता में संलग्न व्यक्ति अपने जीवन में प्रतिपल नवीनता अनुभव करता है। एक मात्र सकारात्मक सोच से हम सारी दुनिया को बदला हुआ महसूस करेंगे।
सद्साहित्य एवं आत्म चिन्तन हमको सकारात्मक सोच की दिशा में ले जायेगा तथा हमारा निरन्तर इस ओर किया गया अभ्यास हमको आत्म सन्तुष्टि एवं जीवन की उत्कृष्टता के दिग्दर्शन करवायेगा। सदैव प्रसन्नचित रहने का प्रयास किया जाना चाहिये। हमारी एक मुस्कुराहट अनेक मुस्कुराहटों में बदल जायेगी। जो वातावरण को भी प्रसन्नचित बना देगी। यही सफलता एवं सकारात्मक सोच का रहस्य है। अतएव सफलता एवं सकारात्मक सोच का मूलमंत्र यही है- सोच बदलोगे दुनिया बदल जायेगी, खूबसूरत ये दुनिया नजर आयेगी, भावना जैसी मन में बसाओगे तुम, सामने वैसी मूरत नजर आयेगी।
थ्री इडियट्स फिल्म को समाज के  हर वर्ग ने बहुत पसंद किया क्योंकि उसमें कॉलेज की मस्ती के साथ-साथ उनसे जुडी समस्या ओर उनके समाधान भी फिल्म को हीरो रंचो बहुत ही आसानी से सुलझा लेता है इस विचार  के साथ कि जिन्दगी इतनी उलझी हुई नहीं है जितना हम उलझा देते हैं। यह तो एक मजेदार भूल भूलैया है थोड़ी सी समझदारी से सुलझायंगे तो आसानी से सुलझ जायगी।  फिल्म का एक डायलॉग जो वास्तव में प्रभावशाली है वह है काबिल बनो कामयाबी तो झक मार कर पीछे आएगी।ऐसा नहीं है कि काबिल सिर्फ आज के कॉलेज के स्टुडेंट्सको बनना है बल्कि हर उस इंसान को बनना है जो समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है।
रोजमर्रा के जीवन में आज क्या बनाना है, क्या खाना है, किसे बर्थडे विश करना है, ऑफिस जाकर आज यह काम करना है। सब कुछ एक रूटीन-सा हो जाता है। ऐसा करना है, ऐसा नहीं करना है, हमारी सोच इन्हीं बंधनों में बंधकर रह जाती है और जिन्दगी चलती जाती है एक ही दिशा में ओर हमारी सोच बहुत सीमित हो जाती है और  हमारी क्रिएटिविटी  समाप्त हो जाती है। क्रिएटिविटी  के साथ-साथ सोच भी बदल जाती है। कई बार सकारात्मक सोच से सफलता, संतोष मिल जाता है परंतु कई बार नकारात्मक कदमों के कारण असफलता हाथ लग जाती है। ऐसे  में जरूरत होती है अपने आप को थोड़ा बदलने की, , ऐसे परिवर्तन की जो व्यवहार में, सोच में ओर जीवन में दिखे।
जिंदगी की सारी खुशी इस पर निर्भर करती है कि हम लाइफ को कैसे लेते हैं, उसे कैसे जीते हैं और हमारे सोचने-समझने का तरीका कैसा है। पॉजिटिव सोच पर लाइफ की असल खुशी टिकी होती है। अगर सोच नेगेटिव होगी तो लाख सुविधाएं होने के बावजूद इंसान खुश नहीं रह सकता। पॉजिटिव सोच वाला व्यक्ति जीवन-संघर्ष में हार नहीं मानता। जैसा हम कई हिंदी फिल्मोंमें देखते है आनंद में राजेश खन्ना ओर कल हो ना हो में शाहरूख खान गंभीर बीमारी में भी पॉजिटिव सोच ओर अपनी चुलबुली हरकतों से दर्शको को बांध कर रखते हैं। सामने चाहे कितना ही अंधेरा क्यों न हो, पर अगर रोशनी की आस में चलते रहेंगे, तो उस तक पहुंच ही जाएंगे।
इसी तरह की सोच के साथ जीवन जीना आना चाहिये कि पानी का ग्लास आधा खाली नहीं आधा भरा हुआ लगे क्योंकि सकारात्मक लोग दूसरों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करते हैं और उन्हें किसी से भी दोस्ती करने में किसी प्रकार को कोई परेशानी नहीं होती। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में हर क्षेत्र रोज नए एक्सपेरिंमेंट हो रहे हैं। ऐसे बदलाव हैं जो  इतनी तेज गति से हो रहे  हैं जिसे न तो रोका जा सकता है न ही मोड़ा जा सकता है। अगर इस बदलाव की लहर को हम स्वीकार नहीं करेंगेतो यह लहर हमें किसी कोने में छोड़ देगी। हां, भेड़ चाल में नहीं चलना है पर अपनी गति को तेज कर बदलाव को स्वीकार करते हुए चलना है।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के शब्दों में ‘‘‘किस रुप में याद रखे जाने की आपकी आकांक्षा है? आपको अपने को विकसित करना होगा और जीवन को एक आकार देना होगा। अपनी आकांक्षा को, अपने सपने को, एक पृष्ठ पर शब्दबद्ध कीजिए। यह मानव इतिहास का एक बहुत महत्वपूर्ण पृष्ठ हो सकता है। राष्ट्र के इतिहास में एक नया पृष्ठ जोड़ने के लिए आपको याद रखा जाएगा। भले वह पृष्ठ ज्ञान-विज्ञान का हो, परिवर्तन का, या खोज का हो, या फिर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का।’’ जीवन को दुविधा भरी स्थिति में न रखें, बाहरी दुनिया में होने वाले परिवर्तन से विचलित न हों। आप किस क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकते हैं उसको पहचानें।
सिर्फ करियर में ऊंचाइयों को पाना ही जीवन की सफलता नहीं है बल्कि सफलता वह है कि आपके जीवन से औरों को कुछ सीखने को मिलता है। हर व्यक्ति का कोई अपना प्रेरणा स्रोत, आदर्श, धर्म की भाषा में कहें तो गुरू होता है। अपने प्रेरणा स्रोत के जीवन प्रसंगों से अपनी परिस्थिति की तुलना कर आत्मविश्वास बढ़ा कर अपनी दिशा में कदम बढ़ायें। हर छोटी बात पर चिढ़ने से बेहतर है कि उस बात या माहौल को इग्नोर कर दें। जैसे एक बच्चा प्लास्टिक की बॉल से आप के पास बैठा खेल रहा है ओर बॉल की आवाज आपको परेशान करती है तो आप बच्चे पर गुस्सा करते हैं ओर खेलने से मना करते हैं।  इससे बेहतर है आप उसे कहीं ओर खेलने को कहें या खुद चले जायें। अपनी झुंझलाहट  को इग्नोर करने से आपकी ऊर्जा का स्तर बढ़ता है।
छोटी-छोटी बातें जैसे बात करते हुए मोबाइल की बैटरी खत्म हो जाती है तो हम चिढ़ जाते हैं या सफर में या कहीं भी बाहर कोई तेज आवाज में बोल रहा है तो हम इरिटेट हो जाते हैं। हम जानते है कि कहीं-कही किसी परिस्थिति में हम कुछ नहीं कर सकते हैं फिर भी परेशान हो जाते हैं। खुद को क्रिएटिव बनायें, दिमाग को थोड़ी देर आराम देकर खुला छोड़ दें। बच्चों के जैसे सवाल खुद से करें, जैसे चांद रात को ही क्यों आता है? पानी बेरंग क्यों है? आप रूटीन में जो खाना बनाते ओर खाते हैं उसके अलावा क्या-क्या बनाया जा सकता है? इतना सोचकर नए आइडियाज को नोट कर समय-समय पर इन्हें काम में लें तब पता चलेगा कि आप भी इतने रचनात्मक हैं ये तो आपको खुद को ही पता नहीं था। अपने कमजोर पहलुओं को प्रकट किये बिना हमेशा क्रियाशील रहें या अपने काम से निरंतर लगाव रखें फिर देखें आपकी काबिलियत के पीछे कामयाबी कैसे आती है।
जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह हर घटना, इंसान, काम और जीवन के दो पहलू होते हैं। हमें अपने आपको इस बात का प्रशिक्षण देना है कि कैसे हम सकारात्मक पहलू को पहले देखें। सकारात्मक दृष्टिकोण लाते ही नकारात्मक पहलू कमजोर दिखाई देता है और हम बड़े-बड़े साहस के कार्य कर गुजरते हैं। नकारात्मक दृष्टिकोण लाते ही सकारात्मक पहलू हमें कमजोर दिखाई देता है और हम छोटे-छोटे कार्य भी समय पर ठीक से नहीं कर पाते। अगर हमारे दृष्टिकोण का इतना बड़ा असर हमारे जीवन पर होता है तो विश्व के किसी भी इंसान को नकारात्मक दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए। हमारा दृष्टिकोण यह बात तय करता है कि हम असफलता को किस तरह लेते हैं।
सकारात्मक दृष्टिकोण रखनेवाले लोगों के लिए असफलता, सफलता की एक सीढ़ी है, इसलिए वे हारकर भी जीतने की कला जानते हैं और उनका स्वागत दुनिया के हर क्षेत्र में होता है। ऐसे लोग ही समाज में भाईचारा, उत्पादकता, तनाव रहित जीवन व कपट मुक्त रिश्तों को बढ़ावा देते हैं। वे लगातार ज्ञान व तेज ज्ञान हासिल करने की कोशिश में लगे रहते हैं। वे बुरी आदतों जैसे सिगरेट, गुटखा, शराब, गाली-गलौज, दूसरों की बुराई इत्यादि से कोसों दूर रहते हैं। हमारे आसपास के वातावरण में कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक विचारों के लोग हैं। अगर हमारे संपर्क में नकारात्मक विचारों वाले लोग आते हैं तो हमें अपना दृष्टिकोण उनके प्रति बदलना है।
जैसे सोने की खान में खुदाई करते हुए उसमें से पहले मिट्टी ज्यादा निकलती है, बाद में सोना निकलता है और खुदाई करनेवाले का ध्यान सोने की तरफ ज्यादा होता है तथा मिट्टी की तरफ कम होता है। वैसे ही जब हम नकारात्मक लोगों को सकारात्मक दृष्टिकोण से, गहराई से जानेंगे तो उनमें भी कोई न कोई बात हमें सकारात्मक नजर आएगी। हम सबको ऐसा दृष्टिकोण मिले कि हमारी नजर हमेशा पहले सकारात्मक पहलू पर जाए यानी हमारी नजर सोने (सत्य) पर हो, न कि मिट्टी या धूल (असत्य) पर। जैसे कोई इंसान बंद घड़ी को भी देखकर कह पाए कि 'यह घड़ी दिन में कम से कम दो बार तो सही समय दर्शाती ही है (रुकी हुई घड़ी भी 24 घंटों में दो बार सही समय बता सकती है)'  
इस तरह उस इंसान ने नकारात्मक चीज (बंद घड़ी) से भी सकारात्मक बात ढूंढ़ निकाली। ऐसा ही दृष्टिकोण हमें भी प्राप्त हो, ताकि हमारे संपर्क में आए हुए लोगों, कार्यो और घटनाओं में से हम सकारात्मक बातें ढूंढ़ पाएं, जिससे हम नकारात्मक विचारों, घटनाओं, क्रियाओं से सदा दूर रह सकें। आत्मविश्वास का खंभा और विचारों के तार : हर इंसान विश्व में एक ऐसा खंभा (पोल) है, जो विचारों को प्रसारित तथा विचारों को ग्रहण करता है। आप जानते हैं बाहर के सभी खंभों में तार जुड़े होते हैं। जब आप रास्ते पर जाएंगे तो हर एक इंसान को एक खंभा समझें और यह समझें कि हर इंसान एक दूसरे से विचारों के तार से जुड़ा हुआ है। विश्व में जितने भी खंभे हैं, सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस पोल (इंसान) में अगर नकारात्मक विचार आए तो क्या होगा?
हम ऐसा मानकर चलेंगे कि विश्व में आधे लोग नकारात्मक विचारक हैं और बाकी लोग सकारात्मक विचारक हैं। जैसे ही आप नकारात्मक विचारक हुए तो सभी नकारात्मक लोगों की शक्ति आपकी तरफ आनी शुरू हो जाती है। निराशा के विचार से विश्व की सारी नकारात्मक चीजें आपकी तरफ आनी शुरू हो जाती हैं। यह अलग बात है कि वे चीजें आप तक पहुंची या नहीं पहुंची, लेकिन नकारात्मक चीजें आनी तो शुरू हो ही गईं। यदि इंसान सालों-साल नकारात्मक सोचता रहे तो विश्व के हर कोने से उसके पास नकारात्मक चीजें पहुंचती हैं और उसे बर्बाद कर देती हैं।
जो इंसान सकारात्मक सोचता है, उसके पास सकारात्मक लोगों की शक्ति पहुंचती है, जिससे वह स्वस्थ और समृद्ध बनता है। इंसान जिस रास्ते से नकारात्मक चीजें दे रहा है, उसी रास्ते से वह नकारात्मक शक्ति ले रहा है। जिस पाइप (विचारों के तार) से विश्वास बाहर जाता है, उसी पाइप से विश्वास अंदर भी आता है। सभी के बीच में तो एक ही तार है। इस उदाहरण से आपने समझा कि जब आप नकारात्मक सोच रखते हैं तब असल में आपके जीवन में क्या अदृश्य हो रहा होता है? यह दिख नहीं रहा है, इसलिए हम बीच-बीच में नकारात्मक विचार करते रहते हैं।
अगर आपको यह सब समझ में आ गया तो आप नकारात्मक विचार नहीं लाएंगे और यदि कुछ नकारात्मक विचार आ ही गए तो आप 'लेकिन' शब्द जोड़कर तुरंत उसे सकारात्मक विचार बना देंगे। 'लेकिन' शब्द के साथ आपको यह कहना है कि यह संभव है। जब आप नकारात्मक विचार करते हैं तो शरीर की हालत कैसे हो जाती है? कोई नकारात्मक खबर भी आपने सुनी तो कैसे आपके पेट में मरोड़ें पड़ने लगती हैं, आपका शरीर सिकुड़ने लगता है। ऐसा आपने कई बार महसूस किया होगा। परंतु 'लेकिन' शब्द जोड़ने के बाद आप देखेंगे कि आपने वे तकलीफें रोक दीं और नकारात्मक विचारों का असर खत्म कर दिया। यह बहुत जरूरी है कि हमारे दिमाग से हमेशा सकारात्मक विचारों का ही संप्रेक्षण हो, लेकिन हमें इससे पहले इन विचारों को दिमाग में बिठाना होगा।
प्रेरणादायक लोगों की संगति व अच्छी पुस्तकों के पठन-पाठन से यह संभव हो सकता है। एक पुरानी कहावत कम्प्यूटर के नियमों पर लागू होती है कि "कचरा डालोगे तो कचरा ही पाओगे।" ऐसा ही हमारी सकारात्मक सोच व सफलता के साथ होता है। अगर हम दिमाग में नकारात्मक और असफलता से भरे विचार डालेंगे तो सफलता नहीं मिल पाएगी। हमारा प्रयास यही हो कि हम सफलता को अपने सामने रखें, तब हमारा चेतन और अवचेतन मस्तिष्क दोनों ही हमें सफलता की ओर ले जाएंगे और हम लक्ष्य के समीप होते चले जाएंगे।
प्रकृति ने प्रत्येक व्यक्ति को पूरी शक्ति दी है कि वह अपनी योग्यता, क्षमता व शक्ति के अनुसार चयन कर सके। वह किसी भी मुद्दे पर सोच-विचार के बाद ही चयन कर सकता है। शरीर की मांसपेशियों की लगातार कसरत से हमारी सेहत सुधरती है। जितनी कसरत करते हैं, सेहत उतनी ही अच्छी होती चली जाती है। सफलता के साथ भी यही प्रक्रिया लागू होती है। जितना आप सफल होंगे, सफलता आपकी ओर खिंचती जाएगी। सफलता के लिए अपने दिमाग को सही ठिकाने पर और सेहतमंद रखना बहुत जरूरी होता है। ऐसा तभी संभव है जब आपमें नियमित रूप से सही चयन व फैसला करने की हिम्मत हो। आप जो भी करें, मान कर चलें कि आपका हर काम आपको सफलता और विजय की ओर ले जा रहा है।
आपके दिमाग में सदा यही विचार होना चाहिए कि आप एक योग्य और भले व्यक्ति हैं। केवल उसी विचार को अपने पास रखें जो एक बेहतर इंसान के रूप में उपलब्धियों तक ले जाने की क्षमता रखता हो। आपको प्रतिदिन अपने दिमाग में अच्छे विचारों को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि काम की पूर्णता व उपलब्धि के लिए आपको प्रोत्साहन मिल सके। साथ ही दिमाग में व्यर्थ की बातों व कूड़े-कचरे को निकालना भी जरूरी है। आपके दिमाग में केवल आशावादी विचारों को ही स्थान मिलना चाहिए, क्योंकि सकारात्मक विचार व प्रेरणा ही आपको बेहतर व्यक्तित्व बनाती है।
केवल उत्साहवर्धक विचार ही आपको अपने लक्ष्य की ओर ले जाते हैं। मेरा निजी अनुभव तो यही कहता है कि जितने समय में हम नकारात्मक विचारों को दिमाग में स्थान देते हैं, उतने ही समय में सकारात्मक विचार दिमाग में बिठाए जा सकते हैं, नहीं तो कुछ भी अच्छा सोचने की बजाय दिमाग बुरी कल्पनाओं में खोया रहता है, इसलिए कुछ अच्छा सोचने की योजना क्यों न बनाई जाए? हम अपने दिमाग में जो भी सोचते हैं, वह किसी न किसी रूप में कर्म बनकर हमारे सामने आ जाता है।
नेपोलियन ने कहा था कि - सोच सफलता का शुरुआती बिन्दु है, जिस तरह छोटी सी आग से कम गर्माहट मिलती है , उसी तरह कमजोर सोच से कमजोर परिणाम मिलते हैं। आपकी सोच ही आपके भाग्य का निर्माण करती है। क्योंकि सच ही कहा गया है कि यदि आप कुछ सोच सकते हैं तो उसे कर भी सकते हैं। हो सकता है अगली चार लाइन आपकी सोच को ही बदल डालें - (1) आप वह हैं, जो आपकी गहन इच्छा है। (2) जैसी आपकी गहन इच्छा है, वैसी आपकी आकांक्षा है। (3) जैसी आपकी आकांक्षा है, वैसा आपका कर्म है। (4) जैसा आपका कर्म है वैसा आपका भाग्य है।
सबसे पहले यह जाने कि आप जीवन में क्या चाहते हैं। यदि आप यह नहीं जानते तब उसे प्राप्त करने का प्रश्न ही नहीं उठता। इसके लिये सबसे पहले आपको अपना लक्ष्य निर्धारित करना पड़ेगा। अपना दृष्टिकोण, स्वप्न, इच्छा, योग्यता, कौशल, ज्ञान और आवश्यकताओं के अनुसार अपने लक्ष्य का निर्धारण करें। हमेशा सितारों को अपना लक्ष्य बनाएं और उन तक पहुंचने का प्रयास करें। आपके लक्ष्य छोटे स्तर के नहीं होने चाहिए। वैसे भी जो साहसी होते हैं उनके लिये लक्ष्य की कोई सीमा नहीं होती। दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं होता। आपके जीवन में भी कोई बाधा ऐसी नहीं है जिसे पार करना संभव न हो। यदि आप दृढ निश्चय कर लें और उस पर चट्टान की तरह अडिग रहें , तो आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचने और उसमें सफलता प्राप्त करने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। छोटी - छोटी बातों को सोचने की बजाय अपनी सोच को व्यापक कीजिये। पीछे की गलतियों को देखने की बजाए आगे की ओर देखें। एक सुनियोजित योजना बनाएं... सुनियोजित इसलिये कि अगर आप योजना बनाने में ही असफल होते हैं तो आप आप असफल होने के लिये योजना बना रहे हैं।
सबसे पहले तो आप यह निर्धारित करें कि आप क्या बनना चाहते हैं - डाक्टर, इंजीनियर , व्यवसायी, एक विजेता, वकील अथवा महान खिलाड़ी। एक बार अपना लक्ष्य निर्धारित करने के बाद न तो किसी अनिश्चय में रहे और न ही हिचकिचाएं और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये लगातार प्रयत्नशील रहें। आप न तो चिंतित हों और न ही मन में डर को हावी होंने दे। जो आज आपको असंभव दिखाई दे रहा है, वह कल, आपके आपके कड़े परिश्रम और सकारात्मक सोच से साकार हो सकता है। बरसों पहले ताजमहल, वायुयान , परमाणु बम, चन्द्रमा पर मानव के कदम सब कल्पनाएं ही तो थीं।
सबसे महत्वपूर्ण है आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये कितना परिश्रम करते हैं। आप तो सर्वसुविधा सम्पन्न है , क्यों नहीं कोई ऊंचा लक्ष्य निर्धारित करते आप... बदलिये अपनी सोच को और अपनी विचारधारा को ... सिर्फ यह जाने और समझे कि आप ही अपने भाग्य के विधाता है और अपनी किस्मत के मालिक हैं।दुनिया में अपने आप से बड़ा कोई भगवान नहीं होता है। स्वयं अपने प्रकृति बने और स्वयं अपने आपको रास्ता दिखाएं ... आपकी जिन्दगी स्वयं ही बदल जाएगी।



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