प्रयोजनमूलक हिंदी और बैंकिंग व्यवस्था
(Functional Hindi and Banking System)
(الهندية وظيفية والنظام المصرفي)
(الهندية وظيفية والنظام المصرفي)
प्रोफ़ेसर राम लखन मीना
बैंकिंग क्षेत्र के लिए हिंदी सांविधिक अपेक्षाओं का अनुपालन मात्र नहीं
है। ग्राहक सेवा और मार्केटिंग जैसे महत्वपूर्ण मसलों में ग्राहक की भाषा ही
उन्हें जोड़ने का कार्य करती है। इसलिए आवश्यक है कि ग्राहक वर्ग बढ़ाने और व्यवसाय
की लाभप्रदता बनाए रखने के लिए हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को ज्यादा से ज्यादा
अपनाया जाए। बैंकिंग हिंदी के क्षेत्र में मूल लेखन की कमी काफी दिनों से महसूस की
जा रही थी। इस कमी को दूर करने के लिए तथा हिंदी में आर्थिक/वित्तीय विषयों पर
मौलिक लेखन को प्रोत्साहित करने की अपनी प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. रघुराम जी. राजन ने हिंदी में आर्थिक/वित्तीय
विषयों पर मौलिक लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए “बैंकिंग पर हिंदी में उत्कृष्ट लेखन” नामक पुरस्कार योजना की आज घोषणा की। इस योजना के तहत भारतीय
विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों को आर्थिक/वित्तीय/बैंकिंग विषयों पर हिंदी में
लिखी गई उनकी मौलिक पुस्तकों के लिए प्रति वर्ष 1,25,000/- (एक लाख पच्चीस हजार रुपए) के तीन पुरस्कार देने के प्रावधान किये गए हैं ।
भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के
लिए बैंकों द्वारा प्रयास में काफी तेजी आई है। इस तेज़ी का एक प्रमुख कारण यह भी
है कि भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग
द्वारा तथा वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवाएँ विभाग, राजभाषा विभाग द्वारा राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति पिछले एक वर्ष के
दौरान जो तेज़ी, गति और दिशानिर्देशों संग अनुवर्ती कार्रवाई
की जा रही है उससे बैंकों के राजभाषा विभाग में एक नयी गति तथा तत्परता आई है।
कृपया इसका यह अर्थ मत निकालिएगा कि इससे पहले बैंकों में राजभाषा कार्यान्वयन
धीमी गति में था वस्तुतः इससे पहले कुछ गिने-चुने बैंकों में ही राजभाषा गतिशील थी
अन्यथा शेष बैंक धारा 3(3) के अनुपालन तक ही सिमटे हुये थे।
पिछले वर्षों में विभिन्न राजभाषा विभागों द्वारा जितनी अनुवर्ती कार्रवाई की गयी
उतनी पहले नहीं दिखलाई देती थी अतएव राजभाषा के इतिहास में पहली बार राजभाषा
कार्यान्वयन के परंपरागत ढंग में नवीनता लायी गयी जिसे सभी बैंकों ने खुले दिल से
स्वीकारा और उसका कार्यान्वयन भी किया जाना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ऐसा क्या हो
गया कि विगत कुछ वर्षों में राजभाषा में एक नवीन परिवर्तन संग नयी गति आई। इस विषय
पर बहुत अधिक चर्चा ना कर यह कहा जा सकता है कि भारत सरकार, राजभाषा
विभाग के सचिव द्वारा बैंकों के प्रशासनिक कार्यालयों तथा शाखाओं का सघन और गहन
निरीक्षण का अभियान तथा इस अभियान के अंतर्गत तात्कालिक समीक्षा और
दिशनिर्देशों ने राजभाषा कार्यान्वयन को अधिक स्पष्ट और सरल बना दिया। बैंकों की
प्रत्येक बैठक में संबन्धित बैंकों के उच्चाधिकारियों तथा कार्यपालकों की उपस्थिती
ने बैंकों में राजभाषा के प्राथमिकता में वृद्धि की । पहले भारत सरकार,
राजभाषा विभाग के सचिव को अधिकांशतः सरकारी आयोजनों में ही सुना जा
सकता था जबकि अब सचिवों द्वारा की गयी पहल ने राजभाषा को एक नयी गरिमा और बैंकिंग
कार्य के एक अनिवार्यता का स्वरूप प्रदान किया जो किसी अति कुशल शिल्पकार की
कलाकृति से कम नहीं है।
प्रायः यह अनुभव किया गया है कि यदि उच्च स्तर
से किसी कार्य के प्रति तेज़ी दिखलाई पड़ती है तो स्वतः वह प्रवाह सम्पूर्ण
कार्यालयीन व्यवस्था को प्रभावित करता है। भारत सरकार, राजभाषा
विभाग द्वारा नए दृष्टिकोण से राजभाषा कार्यान्वयन से प्रभावित होकर वित्तीय
सेवाएँ विभाग, राजभाषा विभाग ने सघन अनुवर्ती कार्रवाई आरंभ
की। सघन शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया कि जब तक किसी पत्र का संतोषप्रद उत्तर
वित्तीय सेवाएँ विभाग को प्राप्त नहीं हो जाता है तब तक लगातार अनुस्मारकों की
बौछार लगी रहती है। यहाँ पर यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि वित्तीय सेवाएँ विभाग
द्वारा पत्रों और अनुस्मारकों के इतने कार्रवाई को अनुभव नहीं किया गया था।
वित्तीय सेवाएँ विभाग ने आपसी संवाद-सार्थक दिशा अभियान द्वारा राजभाषा को बैंकिंग
कामकाज का अभिन्न हिस्सा बनाने की योजना आरंभ की जो मूलतः राजभाषा विभाग द्वारा की
गयी पहल का प्रभाव था।
भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के वार्षिक कार्यक्रम के आधार पर वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवाएँ विभाग के सचिव ने राजभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए विशेषकर
उन बैंकों को दिशानिर्देश दिया जिन बैंकों के कार्यालय या शाखाएँ विदेशों में
स्थित हैं। तदनुसार कुछ बैंकों के शीर्ष कार्यपालक विदेशों में राजभाषा
कार्यान्वयन के लिए विभिन्न आयोजन किए। एक बैंक के कार्यपालक निदेशक ने विदेश
स्थित अपने कार्यालय और शाखा में भारत से बैनर तैयार कर स्वयं ले गए और वहाँ
प्रदर्शित किए। इसके अतिरिक्त आपसी संवाद-सार्थक दिशा पर चर्चा भी की। आपसी
संवाद-सार्थक दिशा का मॉडल -2 भी तैयार होकर कार्यान्वयन की
दिशा में अग्रसर है। वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवाएँ विभाग,
राजभाषा विभाग की यह एक उल्लेखनीय पहल और दिशानिर्देश है जिसने
बैंकों में राजभाषा कार्यान्वयन को गति प्रदान की ।
भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग और वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवाएँ
विभाग, राजभाषा विभाग की जुगलबंदी ने राजभाषा अधिकारियों की
चेतना को और प्रखर कर धारदार बनाया जिससे कई बैंकों में राजभाषा कार्यान्वयन में
उल्लेखनीय प्रगति हुयी जिसकी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। यहाँ यह सोचना
पूर्ण सत्य नहीं होगा कि चूंकि भारत सरकार, राजभाषा विभाग
अति सक्रिय होकर निरीक्षण आदि करने लगा तो राजभाषा अति गतिशील हो गया। यद्यपि इस
सोच में बहुत अधिक सत्यता तो है किन्तु इससे भी प्रमुख सत्य यह है कि बैंक
कर्मियों को एक ऐसी सशक्त और स्वाभाविक प्रेरणा मिली कि वे स्वतः प्रेरित होकर
राजभाषा में कार्य करने लगे। श्रेष्ठ राजभाषा कार्यान्वयन वही है जिसमें कर्मचारी
स्वतः प्रेरित होकर कार्य करने लगें।
लगभग एक वर्ष से कम समय में राजभाषा इतनी सशक्त
हो गयी कि अब सभी बैंक ए टी एम से पर्ची द्विभाषिक (हिन्दी और अँग्रेजी ) देना
आरंभ कर रहे हैं। ग्राहकों को उनके खाते की विवरणियाँ, पास
बूक में प्रविष्टियाँ, डिमांड ड्राफ्ट आदि हिन्दी में देने
की तैयारी को पूर्ण करने के अंतिम चरण में बैंक है। अब विभिन्न बैंकों के राजभाषा
विभाग अपने दायित्वों को पूर्ण करने में व्यस्त हैं तथा इससे राजभाषा की
लोकप्रियता में वृद्धि हुई है। यह भी अति महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय है कि अपने सभी
निरीक्षणों में और आयोजनों में सचिव राजभाषा द्वारा स्थानीय भाषा के महत्व को
स्पष्ट किया जाता है तथा यह आग्रह भी किया जाता है कि राजभाषा में यथासंभव स्थानीय
शब्दों को सम्मिलित किया जाये। सचिव द्वारा स्थानीय भाषा के महत्व को सुनकर
स्थानीय स्टाफ और ग्राहक खुश होते हैं और राजभाषा से जुड़ जाते हैं। सचिव केवल बैंक
कर्मियों को ही संबोधित नहीं करतीं हैं बल्कि ग्राहकों, विद्यार्थियों,हिन्दी के प्राध्यापकों, पत्रकारों आदि से भी
राजभाषा विषय पर चर्चा कर राजभाषा पर आम सोच का विश्लेषण करती हैं और यथावश्यक
दिशानिर्देश देती हैं।
Excellent Article
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