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BHASHIKI ISSN: 2454-4388 (Print): Quarterly International Refereed Research Journal of Language, Applied Linguistics, Education, Media, Translation and Literary Analysis भाषा, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, शिक्षा, मीडिया तथा साहित्य-विश्लेषण की संदर्भ-रिसर्च तिमाही अंतर्राष्ट्रीय संवाहिका

Saturday 31 December 2016

हिंदी के वक्ताओं की संख्या विश्व में सर्वाधिक 1023 मिलियन (Hindi is Most Spoken Language of The World with 1023 Million Speakers) (الهندية والأكثر استعمالا لغة العالم مع 1023 مليون ناطق)

भाषिकी-संपादकीय*
हिंदी के वक्ताओं की संख्या विश्व में सर्वाधिक 1023 मिलियन
 (Hindi is Most Spoken Language of The World with 1023 Million Speakers)
(الهندية والأكثر استعمالا لغة العالم مع 1023 مليون ناطق)
प्रोफ़ेसर राम लखन मीना

हिंदी भाषा हिंदुस्तानी; हिंदी-उर्दू संकल्पना के विकास की कालजयी परिणिति है, जिसके विषय में आरंभ से ही विदेशियों की धारणा गलत रही है। संकीर्ण मानसिकता वाले देशी-विदेशी भाषाविद् हिंदी के नाम पर सिर्फ़ ‘खड़ी बोली’ को ही हिंदी मानते आए हैं जो सच और युक्तियुक्त नहीं है। पूर्वाग्रही विदेशियों ने उर्दू को अलग भाषा के रूप में गिना है यह तो बिल्कुल ही गलत है। उर्दू अलग से भाषा नहीं है बल्कि हिंदी की ही एक शैली है, क्योंकि भाषा तो भाषिक संरचना से वर्गीकृत होती है और उर्दू का अलग से कोई व्याकरण नहीं है। इसमें अधिकांश शब्द व व्याकरण व्यवस्था हिंदी की ही है। अतः हिंदी से इसे अलग भाषा मानना कतई युक्तिसंगत नहीं हैं। हिंदी और उर्दू (हिंदुस्तानी) बोलने वालों की संख्या मिला देने से हिंदी के वक्ताओं की संख्या विश्व में सर्वाधिक 1023 मिलियन से भी अधिक हैं, जो मंदारिन के 900 मिलियन वक्ताओं की तुलना में 123 मिलियन अधिक हैं। डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल द्वारा विश्व के 185 देशों के दैनिक समाचार-पत्रों के इंटरनेट संस्करणों में प्रकाशित आँकड़ों पर आधारित शोध-रिपोर्ट इसकी तथ्यात्मक पुष्टि करती है । वर्त्तमान में सत्तर से अधिक देशों के पांच सौ से अधिक केंद्रों पर हिंदी पढ़ाई जा रही  है। कई केंद्रों पर स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी के अध्ययन-अध्यापन के साथ ही पीएच-डी करने की सुविधा भी उपलब्ध है। विश्व के लगभग एक सौ चालीस देशों के विद्यार्थी प्रतिवर्ष भारत में दिल्ली,आगरा और वर्धा में हिंदी सीखने के लिए आते हैं और अध्ययन-उपरांत वे अपने-अपने देशों में हिंदी और भारत के सांस्कृतिक- राजदूतों के रूप में अपनी अग्रणी भूमिका भी निभाते हैं । आज हिंदी के माध्यम से संपूर्ण विश्व भारतीय संस्कृति को आत्मसात कर रहा है ।
एच.टी.केलब्रुक ने लिखा है कि ‘जिस भाषा का व्यवहार भारत के प्रत्येक प्रान्त के लोग करते हैं, जो पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ दोनों की साधारण बोलचाल की भाषा है,जिसको प्रत्येक गांव में बहुतायत लोग अवश्य ही समझ लेते हैं,उसी का यथार्थ नाम हिन्दी है।’ यही कारण है कि हिंदी इंटरनेट पर भी साल-दर-साल इंगलिश कंटेंट के 19 प्रतिशत ग्रोथ के मुकाबले 94 प्रतिशत बढ़ती जा रही है । इंटरनेट पर यूजर्स की बढ़ोतरी मोबाइल फोन्स के आने से हुई है, 2011 में 100 मिलियन यूजर्स थे और अब हम 300 मिलियन यूजर्स के साथ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट बेस बन गए हैं और 2017 तक हम आसानी से 500 मिलियन बेस तक पहुंच जाएंगे । देश में हर तीसरा व्यक्ति  इंटरनेट को हिंदी में एक्सेस करना पसंद करता है। गूगल हाउस इवेंट की यूएस बेस्ड फर्म ने कहा कि यह बात हिंदी भाषा उपयोग के बढ़ने का एक पुख्ता सबूत है। वेब पर हिंदी कंटेंट की खपत अब बढ़ना शुरू हो गई और 152 मिलियन यूजर्स अपने स्मार्टफोन्स से इंटरनेट एक्सेस करते हैं। 2017 तक 490 मिलियन यूजर्स इंटरनेट को अपने स्मार्टफोन्स से एक्सेस करने लगेंगे और यही एक सबसे बड़ा कारण है कि ‘गूगल अब उन प्रॉडक्ट्स को हिंदी में लाने पर फोकस कर रहा है जो यूजर्स की जरूरतों को समझे और निम्न नेटवर्क वाले क्षेत्र में भी अच्छी तरह काम कर सकें।
गूगल के जरिये कोई शब्द लिखकर उसका हिन्दी अनुवाद देखना तो आसान था ही, अब किसी फोटो में लिखे शब्द का भी अनुवाद करना संभव होगा। तकनीक के क्षेत्र में परचम लहराने वाली कंपनी गूगल ने इसमें सक्षम अपने अनुवाद एप का उन्नत संस्करण पेश किया है । गूगल के इस एप के जरिये किसी फोटो में लिखे शब्द का भी अनुवाद स्क्रीन पर देखा जा सकेगा जिसमें अंग्रेजी से हिन्दी तथा 19 अन्य भाषाओं में अनुवाद हो सकेगा। अपने अनुवाद एप की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए उपभोक्ताओं में पकड़ मजबूत बनाने के उद्देश्य से गूगल ने हिंदी को वरीयता देने के लिए यह कदम उठाया है। इसके जरिये व्यक्ति को मोबाइल का कैमरा सड़कों के चिह्न, सूचनाओं, निर्देशों या ऐसी तस्वीर पर केंद्रित करना होगा, जिसका अर्थ देखना चाहते हैं। इसके बाद कुछ निर्देशों का पालन करते हुए उसे अनुवाद मिल जाएगा। इसके जरिये हिन्दी से अंग्रेजी में भी अनुवाद की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी । एप के इस्तेमाल के लिए इंटरनेट की जरूरत नहीं होगी। यह एप एंड्रायड और आइओएस दोनों के लिए अगले कुछ दिनों में उपलब्ध कराया जाएगा क्योंकि भारत गूगल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण बाजार है। हिंदी का एक मजबूत पक्ष यह भी है कि यह बाजार की भाषा बन चुकी है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने के लिए अपने कदम बढ़ा चुकी है, बस आवश्यकता मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की है।

Invitation for subscription of BHASHIKI ISSN: 2454-4388 भाषिकी : ISSN : 2454-4388 संदर्भ अनुशंसित अंतरराष्ट्रीय रिसर्च त्रैमासिक संवाहिका

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भाषिकी : ISSN : 2454-4388 (प्रिंट)  जो कि भाषा, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, अनुवाद, मीडिया तथा साहित्य-विश्लेषण की संदर्भ अनुशंसित अंतरराष्ट्रीय रिसर्च त्रैमासिक संवाहिका है, जिसके प्रकाशन को लगभग 16 वर्ष हो चुके हैं आपके प्रतिष्ठित पुस्तकालय में भाषिकी की सदस्यता लेने का प्रस्ताव प्रेषित किया जा रहा है ...
Invitation for subscription of BHASHIKI ISSN: 2454-4388 (Print): Quarterly International Refereed Research Journal of Language, Applied Linguistics, Media, Translation and Literary Analysis which is publishing almost for last 16 years.
                The BHASHIKI: Quarterly International Refereed Research Journal of Language, Applied Linguistics, Media, Translation and Literary Analysis / भाषिकी: भाषा, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, अनुवाद, मीडिया तथा साहित्य-विश्लेषण की संदर्भ अनुशंषित अंतरराष्ट्रीय रिसर्च त्रैमासिक संवाहिका is a peer-reviewed international research journal, published by Siddhi Vinayak Publication [The unit of Gramin Vikas Samiti Manoli registered NGO under society act 1960].
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The journal is published in bilingual (Hindi-English) format with printed and it is available online for authors. We are planning that the journal is available online in near future. Emphasis is given to papers that address uncontroversial topics and which have a sound theoretical base and/or practical applications. All research papers reviewed by panel of expert of respective field, it must be original contributions and not under consideration for publication elsewhere. We have listed the topics that fall under the very scope of the journal for the ease of our authors.
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